The Mars : मंगल ग्रह: अनंत रहस्यों का खज़ाना
The Mars : मंगल ग्रह: अनंत रहस्यों का खज़ाना
  1. मंगल ग्रह: अनंत रहस्यों का खज़ाना
  2. मंगल ग्रह पर संपूर्ण मार्गदर्शिका: विज्ञान, खोज और रहस्य
  3. मंगल ग्रह का सम्पूर्ण ज्ञान: इतिहास, वर्तमान और भविष्य
  4. मंगल ग्रह: लाल ग्रह की समग्र जानकारी
  5. मंगल ग्रह का महासागर: अन्वेषण, शोध और भविष्य की संभावनाएँ
  6. मंगल ग्रह: खगोलशास्त्रियों की दृष्टि से
  7. मंगल ग्रह पर वैज्ञानिक अनुसंधान और रोमांचक तथ्य

1.
नमस्कार दोस्तों, बताइए क्या हालचाल हैं। वैसे आपकी प्लानिंग का क्या हुआ दूसरे ग्रह पर जाकर बसने की जो है। क्या आपने भी अपना टिकट बुक करा लिया है, मंगल पर जाने का। अगर हां तो आप वाकई में दूर की सोचने वालों में से हैं। लेकिन अगर आप अभी तक इस बारे में सोच ही नहीं पाए हैं तो जरा अपनी सोच को थोड़ी स्पीड दीजिए, क्योंकि इलन मस्क तो साल 2026 तक, मंगल पर कॉलोनी बसाने का प्लान बना रहे हैं। इसका मतलब जानते हैं आप? इसका मतलब यह हुआ, कि बहुत जल्द हम इंसान पृथ्वी के अलावा किसी और ग्रह पर भी जाकर रह सकेंगे। हां वैसे सोचकर खुशी तो बहुत होती है। लेकिन उतना ही अजीब भी लगता है ना, क्योंकि पृथ्वी को छोड़कर कहीं और रहने का ख्याल कभी आया ही नहीं। ऐसे में इसे छोड़ना थोड़ा मुश्किल भी रहेगा। इतना गहरा साथ जो रहा है। खैर फिलहाल आगे की तरफ देखते हैं, और उन सवालों के बारे में जानते हैं, जो पृथ्वी को छोड़कर मंगल पर बसने की खबर सुनने के बाद, आपके मन में उथल-पुथल मचा रहे हैं। जैसे कि यह सवाल हमें पृथ्वी को छोड़कर जाना ही क्यों पड़ेगा? हमारे सोलर सिस्टम में इतने सारे ग्रह है, तो हमने मंगल को ही क्यों चुना? क्या मंगल पृथ्वी जैसा ही ग्रह है ? क्या वहां भविष्य में जीवन की संभावनाएं हैं ?, या पहले कभी वहां जीवन रहा है?, क्या मंगल ग्रह वर्तमान में भी जीवन के संकेत दर्शाता है? और अगर हमें पृथ्वी से दूर कहीं और ही रहना ही है तो हम चांद पर क्यों नहीं चले जाते? आपके मन के ऐसे ढेर सारे सवालों के जवाब, यहीं इस वीडियो में आपका इंतजार कर रहे हैं। इसलिए आप तैयार हो जाइए, ऐसे सफर के लिए जिसमें उड़ान बहुत दूर की है, और रोमांच से भरी भी है। क्योंकि यह सफर है मंगल ग्रह का, जहां नासा साल 2037 तक अपने एस्ट्रोनॉट भेजने की तैयारी में जुटा हुआ है। ताकि जल्द से जल्द मंगल पर जीवन की संभावनाओं को निश्चित किया जा सके। और मानव जीवन को वहां नई शुरुआत दी जा सके। और उसी मंगल पर इलन मस्क साल 2026 तक, यानी नासा से भी पहले इंसानी बस्ती बसाने का पक्का इरादा बना चुके हैं। लेकिन उस मंगल तक पहुंचने की और इंसानों को बसाने की इस जल्दबाजी का क्या कोई खास कारण है ?, हां, बिल्कुल है। जिस तरह से पृथ्वी पर संसाधन तेजी से खत्म हो रहे हैं, और प्रकृति का असंतुलन बढ़ रहा है। यहां कभी भी तबाही हो सकती है। बर्फ पिघल सकती है। भूकंप आ सकते हैं। और महामारियां भयानक रूप ले सकतीं हैं। स्टीफेन हॉकिन ने भी कहा था, हमें पृथ्वी छोड़ कर जाना ही होगा। क्यूंकि यहाँ कभी भी विनाश हो सकता है। और फिर एलोन मस्क का कहना है की जिस तरह आज से लगभग ६५ मिलियन सालों पहले, एक एस्ट्रोइड के टकराने से डायनासोरों का अस्तित्व पृथ्वी से पूरी तरह मिट गया था, उसी तरह ऐसी घटनाएं , भविष्य में कभी भी घट सकती है, इसलिए हमें अपने लिए कोई और ठिकाना ढूंढ ही लेना चाहिए। और हम इंसानों को मल्टी प्लेनेटरी, यानी बहुत से ग्रहों पर रहने वाला जीव बनना चाहिए। इसलिए उनकी कंपनी स्पेस एकस, बहुत तेजी से मंगल को टेरा फॉर्म करने की प्लानिंग में लगी हुई है। यानी मंगल को पृथ्वी जैसा ग्रह बनाने की तैयारियां की जा रही है। ताकि वहां पर इंसानी जीवन संभव हो सके। चलो अच्छा ही है, किसी नई जगह पर जाने का एक्साइटमेंट इतना ज्यादा होता है तो, यह हमारे लिए एकदम अलग और नई दुनिया होगी। बल्कि एक पूरी तरह से नया ग्रह। अब यह सब सोचकर उम्मीद भी बनती है कि यह ग्रह बिल्कुल अपने नाम जैसा ही होगा। यानी हम सबका मंगल ही मंगल करेगा। पर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि, हमारे लिए यह एक मुश्किल फैसला होने वाला है। क्योंकि आज तक तो यही पढ़ते और सुनते आए थे कि हम पृथ्वी पर रहते हैं, आसमान नीला होता है, एक दिन 24 घंटे का होता है, और एक साल में 365 दिन होते हैं। लेकिन अब जब मंगल पर बस्ती बस जाएगी तो यह सब कुछ तो बदल ही जाएगा है ना। लेकिन मंगल को ही चुनने की कोई खास वजह। इसका जवाब जानने के लिए आपको सफर पर हमारे साथ आगे बढ़ते रहना होगा। इसलिए आइए, लेकिन जरा संभलकर, क्योंकि यह मंगल का सफर है।

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2.
आप यह तो जानते ही हैं कि, हमारे सोलर सिस्टम में आठ ग्रह हैं जो आंतरिक और बाहरी ग्रहों में बटे हुए हैं, आंतरिक ग्रह सूर्य के नजदीक हैं, और बाहरी ग्रह सूर्य से बहुत दूरी पर स्थित है। आंतरिक ग्रहों में चार ग्रह आते हैं। बुध यानी मरकरी, शुक्र यानी वीनस, पृथ्वी यानी अर्थ, और मंगल यानी मार्स। यह चारों ग्रह टेरेस्टियल है। यानी इनके पास धरातल है, और बाहरी ग्रहों में भी चार ग्रह हैं, बृहस्पति यानी जुपिटर, शनि यानी सैटर्न, अरुण यानी यूरेनस, और वरुण यानी नेप्चून, ये चारों गैसियस प्लेनेट हैं। यानी कि गैस से बने हैं। और इनके पास धरातल यानी कि सरफेस नहीं है। अब इनमें से केवल मंगल ग्रह को चुनने का कारण रहा, इस पर जीवन की संभावनाएं मिलना। जबकि बाकी ग्रहों पर ऐसे कोई संकेत नहीं मिलते हैं। बुध ग्रह तो सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह है तो समझ लीजिए कि सूर्य की गर्मी से वह कितना आग बबूला हुआ रहता होगा। इस ग्रह पर दिन का टेंपरेचर 430 डिग्री से तक चला जाता है। तो रात को – 180 डिग्री सेल्सियस तक। अब इस टेंपरेचर का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। तो वहां रहने की कैसे सोच सकते हैं ? अब बात करें शुक्र ग्रह की, तो शुक्र मनाइए कि फिलहाल तो हम इस ग्रह पर रहने नहीं जा रहे। क्योंकि यहां तो सल्फ्यूरिक एसिड की बारिश ही होती रहती है। यहां पानी भी नहीं है ऊपर से इसका टेंपरेचर इतना हाई रहता है कि, सबसे गर्म ग्रह यही है। और इसका एयर प्रेशर भी तो पृथ्वी से 90 गुना ज्यादा है। ना बाबा ना, यहां तो नहीं रहा जा सकता। और बृहस्पति तो बना ही गैसों से है, यानी इस पर लैंड करना ऐसा होगा जैसे, आप किसी बादल पर लैंड कर रहे हैं। अब बादल पर तो नहीं रहा जा सकता है ना। इसी तरह शनि, अरुण और वरुण भी सूर्य से बहुत ज्यादा दूरी पर हैं। और गैसों से बने हुए हैं, यानी फिलहाल वहां जाने का भी कोई प्लान नहीं है। अब बात करें पृथ्वी की, तो उस पर तो हम ऑलरेडी ही रहते हैं, और मंगल जो कि सूर्य के नजदीकी ग्रहों में चौथे नंबर पर आता है, वह पृथ्वी के काफी नजदीक है। और उसके पास पृथ्वी की तरह अपना धरातल भी है, यानी कि सरफेस भी है। यह ग्रह सूरज से बहुत ज्यादा दूरी पर भी नहीं है यानी बाकी ग्रहों की तुलना में, ना तो बहुत ज्यादा गर्म है, और ना ही बहुत ज्यादा ठंडा, यानी मंगल ही वह ग्रह है, जिस पर इंसानों का जीना संभव हो सकता है। लेकिन, क्या यह वाकई में इतना आसान है, मंगल से आपकी उम्मीदें ज्यादा बढ़े, और आप जल्द से जल्द वहां, पृथ्वी जैसा सामान्य जीवन जीने की कल्पना करने लगे। उससे पहले आपको बता दें कि, इस ग्रह पर जीवन इतना भी आसान नहीं होगा। इतनी जल्दी यह दूसरी पृथ्वी नहीं बन सकता। और अगर आज कोई इस ग्रह पर कदम रखना चाहे तो यहां मौजूद रेडिएशन उसकी जान ले सकती है। यहां का लो टेंपरेचर, ऑक्सीजन की कमी, लो एटमॉस्फेरिक प्रेशर, सब मिलकर के उसका का स्वागत नहीं करेंगे, बल्कि उसकी जान खतरे में डाल देंगे। इसलिए अगर फिलहाल आप सपने में भी मंगल पर जाएं, तो अपने साथ पूरा बंदोबस्त करके ही जाएं। अब यह सुनकर शायद हैरानी हुई हो, लेकिन अभी आप मंगल पर जाकर खड़े नहीं हो सकते। क्योंकि यह ग्रह अभी इंसानों रहने लायक बिल्कुल भी नहीं है। यहां तो बस रोवर्स ही सैर कर रहे हैं। मंगल पर जाना काफी कठिन है। और इंसानों को वहां पहुंचाना और भी ज्यादा मुश्किल है। क्योंकि कि भले ही वहां तक पहुंचने का प्रोसेस हम पूरा कर लें, लेकिन हमें अपने सर्वाइवल के लिए, इस ट्रिप में सब कुछ साथ में पैक करके ले जाना होगा। ताकि वहां रहा भी जा सके। और वापस लौटा भी जा सके। क्योंकि वहां पर पृथ्वी की तरह नदी का पानी नहीं पिया जा सकता। पेड़ से फल तोड़कर नहीं खाए जा सकते। और अपनी गाड़ी में बैठकर बड़ी आसानी से, घर भी नहीं लौटा जा सकता। तो सवाल यह आता है कि फिर मंगल पर जाने की इतनी तैयारियां क्यों हो रही हैं।

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3.
अच्छा सवाल है। तो दोस्तों आज अगर हम मंगल ग्रह को, एक्सप्लोर करने में जुटे हुए हैं। तो इसका सबसे बड़ा रीजन है कि, पृथ्वी के बाद यही ऐसा ग्रह है, जहां पर जीवन की संभावनाएं नजर आ रही हैं। और पृथ्वी के अलावा ब्रह्मांड में क्या, कहीं और भी जीवन संभव है, यह जानने के लिए मंगल एक अच्छा जरिया नजर आ रहा है। और एविडेंस बताते हैं कि, इस ग्रह पर पहले कभी बहुत सारा पानी भी था। और यह रहने लायक गर्म ग्रह भी था। और इसका एटमॉस्फेयर भी लाइफ को सपोर्ट करता था। यानी यह ग्रह उम्मीद भी देता है। और जीवन की सुराग भी। लेकिन अभी मंगल ग्रह कैसा है? क्या वहां भी पृथ्वी जैसा ही दिन होगा ? और क्या उसके पास भी ऐसा चंद्रमा है जिसे रात के आसमान में देखने का आनंद उठाया जा सकता है ? तो बात ऐसी है कि, यह तो मंगल को करीब से जानकर ही पता चलेगा। इसलिए, आइए मंगल के इस रोमांचक सफर में आगे बढ़ते हैं। मंगल ग्रह, जिसे मार्स भी कहा जाता है, उसे नाम रोमन गॉड ऑफ वॉर से मिला है। और हां मार्च के महीने को यह नाम भी मार्स से ही मिला है। इंटरेस्टिंग ना। मंगल की उम्र करीबन 4.6 बिलियन इयर्स है। और यह ग्रह बुध के बाद, सोलर सिस्टम का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है। वसे सोचकर अजीब तो लगता है कि हम एक छोटे से ग्रह पर शिफ्ट होने वाले हैं। लेकिन क्या करें हमने पृथ्वी की अच्छी तरह कद्र की होती तो, आज इस बड़े से अपने से ग्रह से बोरिया बिस्तर समेटने की नौबत ही ना आती। खैर, फिलहाल तो मंगल की ही बात करते हैं। सूर्य से इसकी दूरी 228 मिलियन किलोमीटर है। जबकि पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी 151.5 मिलियन किलोमीटर है। ऐसे में सूर्य का प्रकाश इस ग्रह तक पहुंचने में लगभग, 12.6 मिनट का समय लग जाता है। जबकि पृथ्वी तक पहुंचने में सूर्य के प्रकाश को 8.3 मिनट का समय ही लगता है। मंगल का द्रव्यमान पृथ्वी से लगभग 10 गुना कम है। और अगर आप पृथ्वी के आयतन को मंगल ग्रह से भरना चाहे तो, इसके लिए आपको छह से भी ज्यादा मंगल ग्रहों की जरूरत पड़ जाएगी, और अगर आप मंगल ग्रह से सूर्य के आयतन को भरने का इरादा करें तो, तो इसके लिए आपको मंगल के आकार के ७ मिलियन ग्रह चाहिए होंगे। सुनकर आप दंग रह गए होंगे। लेकिन अगर आपको उछल कूद करना बहुत पसंद आता है तो, इसके लिए आप केवल एक मंगल ग्रह पर भी भरपूर मजा ले सकते हैं। क्योंकि मंगल ग्रह पर, आप पृथ्वी की तुलना में तीन गुना ज्यादा ऊंचा जंप कर सकेंगे।क्योंकि मंगल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति काफी कमजोर है, जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का केवल 38% ही है। इससे जम्प करने में तो मजा आ सकता है। लेकिन इससे होने वाली परेशानी भी काफी बड़ी हो सकती है। क्योंकि यह लो ग्रेविटी हड्डियों को डैमेज भी कर सकती है। लेकिन एक खुशखबरी ऐसी भी है, जिसे सुनकर आप खुशी से उछले बिना नहीं रह पाएंगे , क्योंकि अगर आप अपने वजन को कम देखना चाहते हैं तो, मंगल इसमें आपकी पूरी मदद करेगा। क्योंकि पृथ्वी पर अगर आपका वजन 100 किग्रा है तो, मंगल पर यह वजन केवल 38 किलोग्राम ही रह जाएगा। रे आया ना मजा। और इसका रीजन तो वही है लो ग्रेविटी। लेकिन यह भी जान लीजिए कि, पृथ्वी का यह पड़ोसी ग्रह मंगल, आकार में पृथ्वी का लगभग आधा है, और इसका व्यास 6779 किमी है। जो पृथ्वी का लगभग 53% है। इसी तरह मंगल की सतह का क्षेत्रफल 1448 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, जो पृथ्वी का लगभग 38% है। जो काफी कम लगता है। लेकिन वास्तव में यह पृथ्वी की पूरी शुष्क भूमि के बराबर है। हम चलिए कोई बात नहीं। भले ही मंगल पृथ्वी से आधा है, लेकिन इसके पास चांद तो दो हैं। यानी मंगल के पास दो नेचुरल सेटेलाइट्स हैं। फोबोस और डिमोल। ये दोनों सेटेलाइट्स पृथ्वी के चंद्रमा से काफी छोटे हैं। और इनके आकार भी अनियमित है।

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Comparing the atmospheres of Mars and Earth

4.
इन्हें इनमें से फोबोस काफी बड़ा है। जो धीरे-धीरे मंगल की तरफ झुक रहा है, और साइंटिस्ट का मानना है कि, एक दिन वह मंगल की सतह पर आकर नष्ट हो जाएगा। ओह, फिर शायद मंगल के पास भी एक ही चांद रह जाएगा। लेकिन ऐसा होने में शायद काफी समय लगेगा। इसलिए आइए हम इस सफर में आगे बढ़ते हैं। और अब चंद्रमा के बाद, अगर दिन रात की बात करें तो मंगल पर एक दिन 24 घंटे और, 37 मिनट का होता है। यानी आपको एक दिन में जो 24 घंटे कम लगते हैं। उस कमी को आप 37 मिनट बढ़ा सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको मंगल पर जाना होगा। पर हां, इसके लिए भी तैयार हो जाइए, कि मंगल का एक साल 687 दिनों का होता है। यानी आपकी बर्थडे पार्टी और गिफ्ट्स के लिए आपको पृथ्वी की तुलना में लगभग दो गुना इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि आपका बर्थडे आने में तो लगभग 2 साल लग जाएंगे। इसका कारण मंगल की कक्षा का अंडाकार होना है। जिसमें सूर्य की परिक्रमा करने में मंगल को पृथ्वी से लगभग दो गुना समय लग जाता है। यूं तो पृथ्वी की कक्षा भी अंडाकार ही है लेकिन, वह मंगल की कक्षा से कम अंडाकार है। वैसे शायद आप जानते हो कि मंगल को रेड प्लेनेट यानी लाल ग्रह भी कहते हैं। तो क्या मंगल बहुत गर्म है। बिल्कुल भी नहीं मंगल का रंग गर्मी की वजह से नहीं बल्कि, यहां मौजूद धूल की वजह से लाल है। क्योंकि यहां की मिट्टी और चट्टानों में आयरन ऑक्साइड, काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद है। जिसे हम बोलचाल में रस्ट यानी कि जंग कहा करते हैं। इसी की वजह से यह ग्रह इतना लाल है। मंगल ग्रह के दोनों गोलार्ध भी आयरन रस्ट से ढके हुए हैं। जो इन गोलार्ध को नारंगी लाल और भूरा रंग देती है। इसका मतलब मंगल गर्म ग्रह नहीं है। और आपको गर्मी की फिक्र करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। हां, आप चाहो तो ठंड की फिक्र कर सकते हो। क्योंकि यह ग्रह एक कोल्ड डेजर्ट है। एक ठंडा रेगिस्तान जहां का एवरेज टेंपरेचर, माइनस 62 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन मंगल के इतना ठंडा होने का कारण क्या है। आइए पता लगाते हैं। मंगल के वातावरण में 96% कार्बन डाइऑक्साइड, 1.9% ऑर्गन, 1.9% नाइट्रोजन और बहुत थोड़ी सी मात्रा ऑक्सीजन, कार्बन मोनोऑक्साइड, जलवाष्प और मीथेन की है। और अगर इसकी तुलना पृथ्वी के वातावरण से करें तो, पृथ्वी पर तो 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1% बाकी गैसे हैं। यानी इन दोनों ग्रहों के वातावरण में तो काफी ज्यादा अंतर है। और क्योंकि मंगल के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बहुत ज्यादा है। जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है। और गर्मी को वातावरण में रोककर उसे गर्म करने में मदद करती है। तो ऐसे में मंगल को तो गर्म होना चाहिए था। लेकिन इसका वातावरण पृथ्वी की तुलना में बहुत ही पतला है। इतना पतला कि पृथ्वी के वातावरण की तुलना में यह 100 गुना ज्यादा पतला है। जो गर्मी को अपने अंदर रोक नहीं पाता। इसलिए यह ग्रह इतना ठंडा है। और सूरज से इसकी दूरी भी तो पृथ्वी की तुलना में ज्यादा ही है। इसलिए यह गर्म दिखने वाला मंगल ग्रह एक ठंडा रेगिस्तान है। और इस ग्रह के बहुत पतले वातावरण की वजह से मंगल की सतह पर जो लो प्रेशर बनता है। वह इस ग्रह की सतह पर लिक्विड वाटर को मौजूद नहीं रहने देता। इसलिए यहां लिक्विड वाटर के बहुत ही कम निशान देखने को मिलते हैं। इस ग्रह पर पानी केवल बर्फीली और पतले बादलों के रूप में रह गया है। और जो थोड़ा बहुत लिक्विड वाटर यहां मिला है। वह भी इस ग्रह के ध्रुवों पर बर्फ की टोपियो यानी आइस कैप्स के रूप में मौजूद हैं। बदलते समय के साथ मंगल पर पानी मिलना आज भले ही कठिन लग रहा हो, लेकिन पहले कभी मंगल पर बाढ़ भी आई होगी।

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इसके निशान मिले हैं। और मंगल के दक्षिणी ध्रुवी बर्फ की टोपी के नीचे एक नदी के एविडेंस भी मिले हैं। और तभी से हमारे भविष्य के लिए मंगल पर पानी की उम्मीद काफी बढ़ी है। और हमारे जीवन की भी यानी पहले कभी मंगल पर पानी रहा होगा। और आगे भी मंगल पर पानी की संभावनाएं बढ़ाई जा सकती है। लेकिन इसमें शायद बहुत समय लग जाए। ऐसे में हमें इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि, हम पृथ्वी के जल को तो बचा ही ले ताकि हमारा आज तो प्यासा ना रहे पर, अब भी सवाल यह आता है कि मंगल पर पानी की आस तो बन गई है, लेकिन ऑक्सीजन का क्या तो मंगल पर ऑक्सीजन की मात्रा तो बहुत ही कम है। और वहां बहुत ज्यादा ठंडा कार्बन डाइऑक्साइड से भरा वातावरण भी है। ऐसे में मंगल के एटमॉस्फेयर में सांस लेना कितना मुश्किल होगा। इसका तो शायद हम अंदाजा नहीं लगा सकते, लेकिन यह बता सकते हैं कि, ऐसे वातावरण में सांस लेने के लिए अपनी खुद की ऑक्सीजन लेकर साथ चलना होगा। वैसे हमारे लिए अच्छी खबर और उम्मीद की किरण यह है कि, नासा ने पर्स विरेंस रोवर के जरिए मंगल पर ऑक्सीजन प्रोड्यूस करने की शुरुआत कर दी है। इस इसका मतलब भविष्य में हालात बेहतर जरूर होंगे। लेकिन अगर आपको ऐसा लगता है कि, आज हम अचानक ही मंगल ग्रह के बारे में इतना कुछ जान पा रहे हैं, जो दिलचस्प भी है। और नया भी तो आपको यह पता होना जरूरी है कि, मंगल ग्रह को हम आज से नहीं जानने लगे हैं बल्कि, बहुत पहले से इस ग्रह को आसमान में चमकते तारे की तरह देखा जा रहा है। और सबसे पहले टेलिस्कोप से मंगल को देखने वाले पहले व्यक्ति गैलीलियो गैलीली थे। जिन्होंने 1610 में इसला ग्रह को पहली बार देखा था। हां यह जरूर है कि, आज हम मंगल की सतह और इस ग्रह पर मौजूद जीवन की संभावनाओं के बारे में ज्यादा से ज्यादा जान पा रहे हैं। इसके लिए धन्यवाद हमारे साइंटिस्ट को और साइंस को, ऐसे थैंक्स तो आपको भी कहा जा सकता है। अगर आप यह बता दें कि पृथ्वी अपने अक्ष पर कितना झुकी हुई है 23.5 डिग्री। बिल्कुल सही, जवाब शुक्रिया, और क्या आप जानते हैं कि मंगल का रोटेशन एक्सेस 25.2 डिग्री झुका हुआ है ? और क्योंकि इन दोनों की एक्सेस पर झुकाव में ज्यादा अंतर नहीं है। इसलिए मंगल पर पृथ्वी जैसे सीजन भी पाए जाते हैं। यानी स्प्रिंग समर ऑटम और विंटर। इन चारों सीजंस का मजा वहां भी लिया जा सकता है। चलो यह तो अच्छा हुआ। लेकिन याद रखिए कि वह मंगल है। तो पृथ्वी से कुछ तो अलग होगा ही ना। इसलिए मंगल का हर सीजन लगभग दो गुना लंबा होता है। क्योंकि मंगल ग्रह का एक साल भी तो पृथ्वी के एक साल से लगभग दो गुना होता है। और मंगल पर सबसे लंबा सीजन स्प्रिंग का होता है। जो 194 दिन का होता है। और ऑटम सबसे छोटा सीजन होता है। जो 142 दिनों तक चलता है। सीजन के अलावा मंगल पर पृथ्वी की तरह ज्वालामुखी और घाटियां भी है। और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, जिस मंगल पर अभी तक किसी का ठिकाना नहीं बन पाया है। उसी मंगल पर सोलर सिस्टम का हाईएस्ट माउंटेन राज कर रहा है। जिसका नाम है ओलंपस माउंटेंस, और यह एक ज्वालामुखी है, इसकी ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से लगभग तीन गुना है। इसका मतलब माउंट एवरेस्ट की हाइट 4 किमी है यानी 29032 फीट तो, ओलंपस मंस की ऊंचाई 21.9 किमी यानी 72000 फीट है, अब आप कल्पना करके देख लो कि वह कितना ऊंचा होगा। और अगर आप ऊंचाई की कल्पना करने लगे हैं तो, गहराई को सोचने के लिए भी तैयार हो जाइए। क्योंकि मंगल पर केवल सबसे ऊंचा पहाड़ ही नहीं है। बल्कि सोलर सिस्टम की सबसे बड़ी घाटियां भी है। जिनमें से एक है वेलेस मरिनर्स। इस घाटी को यह नाम मेनर नाइन मार्स ऑर्बिटल से मिला है। जिसने साल 1971 से 1972 में इस घाटी की खोज की थी। और मंगल की वेलेस मरिनर्स घाटी 4000 किमी लंबी है। और इसकी गहराई 7 किलोमीटर है। इसकी तुलना पृथ्वी की ग्रैंड कैनयन से करें तो, केवल 446 किमी लंबी और 1.6 किमी गहरी है।

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यह अंतर तो काफी ज्यादा है। दोस्तों, लेकिन कोई बात नहीं। मंगल पर पृथ्वी जैसे पहाड़ घाटियां और मौसम है। यह जानकर अच्छा लगा, और क्या आपको पता है कि, इनके अलावा मंगल की सतह पर गड्ढे भी हैं। और उनमें से सबसे विशाल गड्ढा, हेलस प्लेनिश या है, जो लगभग 2200 किलोमीटर चौड़ा, और 8 किलोमीटर गहरा है। यह तो वाकई में चौकाने वाली बातें हैं। यानी मंगल ने तो अपने अंदर ऐसा बहुत कुछ छुपा रखा है, जिसे जानकर हम हैरानी से भरते जा रहे हैं। हां, लेकिन इस बात की तसल्ली जरूर है कि मंगल पर बहुत कुछ पृथ्वी जैसा भी है। इसी बात पर मंगल के इस रोमांचक सफर पर आगे बढ़ते हैं। और जरा ठंडी छाव के लिए किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लेते हैं। अरे लेकिन यह क्या मंगल पर तो पेड़ ही नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि क्या आप पेड़ के बिना जीवन की कल्पना कर सकते हैं। बिल्कुल भी नहीं। ऐसे में अगर आप मंगल की मिट्टी में पेड़ उगाने के बारे में सोचेंगे भी, तो भी पेड़ उगाना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि इसकी मिट्टी में पोषक तत्व है ही नहीं। और यहां का मौसम भी काफी ठंडा है। हां लेकिन शुरुआत में अगर कुछ फसलें उगाई जाए तो, कुछ बेहतर रिजल्ट हमें मिल सकते हैं। और फिर बांस का पेड़ है ना। आपको साथ देने के लिए यानी मंगल पर हम बांस उगा सकते हैं। क्योंकि मंगल की मिट्टी इसके अनुकूल है और फिर बांस को ज्यादा पोषक तत्त्वों की जरूरत भी तो नहीं होती। लेकिन अगर आप मंगल पर पृथ्वी की तरह पेड़ देखना चाहते हैं तो, आपको शायद 100 सालों का इंतजार करना पड़े क्योंकि 100 साल बाद मंगल पर पेड़ उगाना शायद आसान हो जाएगा। ऐसे में क्या उन 100 सालों में हमें पृथ्वी के पेड़ों का ख्याल नहीं रख लेना चाहिए। अब आप इस बात की फिक्र में डूबे कि मंगल पर पेड़ नहीं है। उससे पहले आपको बता दें कि मंगल पर तो पृथ्वी जैसा स्ट्रांग मैग्नेटिक फील्ड भी नहीं है। यह मैग्नेटिक फील्ड इलेक्ट्रिकल चार्ज की ऐसी लेयर होती है, जो हमारे ग्रह पृथ्वी को घेरे रहती है और इस फील्ड की बदौलत ही इस ग्रह पर जीवन सुरक्षित है। क्योंकि सूरज से आने वाले चार्जड पार्टिकल्स को डिफ्लेक्ड कर देती है। जिन्हें सोलर विंड कहा जाता है। अब सवाल यह है कि, अगर यह प्रोटेक्टिव लेयर ना होती तो क्या होता। तो पृथ्वी की ओजोन लेयर ही खत्म हो जाती। और यह तो सभी जानते हैं कि, यह ओजोन परत ही सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारा बचाव करती आई है। और अब जब इस परत में छेद होने लगा है, तो उसके साइड इफेक्ट्स भी दिखने लगे हैं। तो सोचिए कि मंगल पर तो ऐसी कोई परत और ऐसा कोई प्रोटेक्ट करने वाला मैग्नेटिक फील्ड ही नहीं है, तो वहां सोलर विंड से कौन बचाएगा। वैसे आप इन सोलर विंड से बचाव का कोई तरीका सोचे उससे पहले आपको तूफान के लिए आगाह करना भी जरूरी है। क्योंकि यूं तो मंगल पर कोई चहल पहल नहीं रहती है। लेकिन यहां तूफानों की आवाजाही अक्सर होती ही रहती है। और यहां आने वाले धूल के तूफानों को शांत होने में भी महीनों लग जाते हैं। जिसकी वजह से मंगल पर किए जाने वाले रिसर्च में काफी परेशानी हुआ करती है। मंगल पर तेजी से चल रहे रिसर्च की वजह से आप जरूर खुश होंगे, और यह जानना चाहते होंगे कि मंगल पर खड़े होकर देखने पर सूरज कैसा दिखाई देगा। आसमान कैसा होगा और क्या वहां भी सनसेट बहुत खूबसूरत ही होगा ? तो चलिए आपके इन खयालातों को भी मंगल की हकीकत से मिला ही देते हैं। और आपको बता देते हैं कि, जब आप मंगल पर खड़े होकर सूरज को देखेंगे तो, थोड़ा परेशान हो सकते हैं, क्योंकि वहां पर सूरज आपको थोड़ा छोटा नजर आ सकता है। और इसका रीजन आपको याद दिला दे कि मंगल ग्रह पृथ्वी की तुलना में सूर्य से ज्यादा दूरी पर है। इसलिए वहां मंगल पर आपको सूर्य पृथ्वी से दिखाई देने वाले आकार का केवल दो तिहाई ही नजर आएगा।

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आपकी इस हैरानी में एक और हैरानी जोड़ दी जाए तो, कैसा रहेगा। क्योंकि यह जानकर भी आप हैरान हो सकते हैं कि, मंगल पर जाकर आप यह गाना नहीं गा सकेंगे। नीला आसमान सो गया, क्योंकि वहां पर आसमान नीला नहीं बल्कि लाल दिखाई देता है। और वहां के सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग नीला नजर आता है। सुनने में सब बड़ा ही उल्टा-पुल्टा सा लग रहा है ना। लेकिन जब ग्रह ही बदल जाएगा तो बदलाव भी तो होंगे ही। और इस बदलाव का कारण काफी हद तक आप जानते भी हैं, और यह कारण है, मंगल का बहुत ही कम वातावरण, और उस पर मौजूद लाल डस्ट। मंगल पर मौजूद यह डस्ट सारे रंगों की लाइट को इक्वली ब्लॉक करती है। लेकिन क्योंकि मंगल की डस्ट का रंग लाल है। इसलिए यह डस्ट नीले प्रकाश को अब्जॉर्ब कर लेती है। और लाल प्रकाश को स्कैटर कर देती है। जिससे आसमान नीला नजर नहीं आ पाता। बल्कि लाल रंग का दिखाई देने लगता है। यही डस्ट सूरज के आसपास के एरिया में थोड़ा नीला प्रकाश भी स्कैटर करती है। जिसकी वजह से केवल सूर्योदय और सूर्यास्त नीले दिखाई पड़ते हैं। और इस समय बाकी आसमान, पीले से नारंगी रंग का ही रहता है। मंगल ग्रह की यह डस्ट इसे कैसा रंग रूप देती है। देखकर तो यही लगता है कि, मंगल ग्रह पर इसका काफी प्रभाव है। इसी की वजह से तो मंगल को लाल ग्रह की उपमा भी मिली हुई है। और अगर मंगल पर यह लाल डस्ट नहीं होती तो, मंगल के आसमान में इतने रंग दिखने की बजाय, वह आसमान लगभग काला नजर आता। चलिए, अब आप चाहे तो, इन रंगों भरे आसमान की कल्पना कर सकते हैं। और चाहे तो, मंगल पर गुनगुनाने के लिए कोई नया और अच्छा सा गाना भी तैयार कर सकते हैं। तब तक इस सफर में आगे हम मंगल मिशंस के बारे में समझ लेते हैं।

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अब तक मंगल पर बहुत से मिशंस भेजे जा चुके हैं। और यह अकेला ऐसा ग्रह है जहां, पर रोवर्स भेजे गए हैं, जो मंगल की सतह पर घूमते हुए, पिक्चर्स और मेजरमेंट्स लेते हैं। नासा ने फाइव रोबोटिक व्हीकल्स मंगल पर भेजे हैं, जिन्हें रोवर्स कहा जाता है। और यह रोवर्स हैं सोजोनर स्पिरिट अपॉर्चुनिटी क्यूरियोसिटी और प्रिजर्व एस और मार्स 2020 प्रिजर्व रोवर मिशन नासा के मास एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम का एक पार्ट है। जो लगातार मंगल पर जीवन की संभावनाओं की खोज कर रहा है। मंगल को एक्सप्लोर करने का यह सफर 1960 के दशक से ही जारी रहा है। और तब से मंगल पर मिशन भेजने वाले देशों में यूएस, रशिया, भारत और यूरोपियन स्पेस एजेंसीज जैसे कई सारे देशों के नाम शामिल रहे हैं। साल 2013 में भारत के इसरो ने मंगलयान यानी, मार्स ऑर्बिटर मिशन को लॉन्च किया और भारत का यह पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन सफल रहा। जिससे भारत वह देश बन गया जो पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में सक्सेसफुली एंटर हुआ। और इसी के साथ इसरो दुनिया की ऐसी चौथी स्पेस एजेंसी बन गई, जो मंगल की कक्षा तक पहुंची। इससे पहले रोस कॉस्मस, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ही ऐसा कर पाए थे। और इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद, अब इसरो मंगलयान टू की तैयारी में जुटा हुआ है। अच्छा, वैसे क्या आपको यह पता है कि, अभी तक केवल दो देश यानी कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ही मंगल ग्रह की जमीन ? पर अपने स्पेसक्राफ्ट उतारने में सफल हो सके हैं। पर अब अगर आने वाले समय में मंगल की जमीन पर इंसानों के उतरने की बात सोचे तो कैसा रहेगा ? क्योंकि अब स्पेस एकस बहुत बड़े अचीवमेंट की तैयारी में जुटा हुआ है। क्योंकि एलान मस्क की इस कंपनी का स्टार शिप, ऐसा मोस्ट पावरफुल लॉन्च व्हीकल होने वाला है जो, एक साथ लगभग 100 लोगों को मंगल ग्रह तक ले जाएगा और यह पूरी तरह से रियूजेबल रॉकेट्स बनाने का इरादा रखते हैं। और उनके अनुसार ऐसे रॉकेट्स का इस्तेमाल करने से मार्स मिशन के खर्च को लगभग पांच गुना तक कम किया जा सकता है।

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और स्पेस में कचरा होने से भी रोका जा सकता है। वाकई बहुत ही दूर की सोच रखते हैं। इलन मस्क इसके अलावा, इलन मस्क के अनुसार हमें मंगल पर प्रोपेलेंट यानी फ्यूल बनाने की भी तैयारी करनी होगी, क्योंकि मंगल पर पहुंचे स्पेसशिप को पृथ्वी पर वापस भी तो भेजना होगा। जिसके लिए फ्यूल की जरूरत होगी। और जो लोग मंगल पर जाएंगे। उन्हें भी तो घर वापस ना होगा। इसकी पॉसिबिलिटी भी एलन मस्क ने ढूंढ ली है। क्योंकि मंगल पर कार्बन डाइऑक्साइड बहुत ज्यादा मात्रा में है। और मंगल की जमीन के अंदर से पानी भी निकाला जा सकता है। और इन दोनों को मिलाकर, यानी co2 और h2o की मदद से o2 और मिथेन बनाई जा सकती है, और इनमें से मिथेन फ्यूल के रूप में काम आ जाएगी। और इस तरह मंगल के सफर के लिए हमारी गाड़ी के फ्यूल की व्यवस्था भी हो जाएगी। चलिए मंगल के सफर में यह तसल्ली तो हो गई। कि जब भी मंगल पर जाए तो, लौटकर वापस आना भी पॉसिबल हो सकेगा। लेकिन क्या ? यह सवाल आपके मन में भी आया है कि, मंगल पर मिशन भेजे जाने का क्या कोई फिक्स टाइम होता है ? या साल में कभी भी मार्स मिशन भेज दिए जाते हैं ? तो देखिए, आप यह तो जानते ही हैं कि मंगल और पृथ्वी दोनों ही सूर्य की परिक्रमा लगाते हैं। लेकिन इनकी दूरी और गति अलग-अलग होती है। और अब यह भी जान लीजिए कि लगभग हर 26 महीनों के बाद मंगल पृथ्वी और सूर्य एक सीधी लाइन में आ जाते हैं। जिसमें पृथ्वी बीच में होती है। और इस सिचुएशन को अपोजिशन कहा जाता है। इस सिचुएशन में मंगल और सूर्य दोनों पृथ्वी के एकदम विपरीत दिशाओं में होते हैं। इस समय मंगल और पृथ्वी के बीच दूरी सबसे कम होती है। यानी इस समय यह दोनों पड़ोसी ग्रह काफी नजदीक होते हैं। इसलिए इस पीरियड में बहुत से मार्स मिशंस भेजे जाते हैं। क्योंकि इस दौरान मिशंस भेजने से ट्रेवल टाइम और खर्चा कम हो जाता है। तो अब आप समझ गए ना कि, अपोजिशन की सिचुएशन में ही मार्स मिशन भेजे जाते हैं। और अपोजिशन की ऐसी सिचुएशन लास्ट टाइम 8 दिसंबर 2022 को हुई थी। और अब अगली बार ऐसा 16 जनवरी 2025 को देखा जा सकेगा। जब लाल ग्रह मंगल पृथ्वी से केवल लगभग 60 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर होगा। अपोजिशन की सिचुएशन में मंगल ग्रह रात में हमारे आसमान में चमकता हुआ नजर आता है। इस समय मंगल सबसे ज्यादा चमकता है। और टेलिस्कोप के जरिए इसके आकार को भी बहुत अच्छी तरह देखा जा सकता है। इस नजारे को तो आप भी जरूर देखना चाहेंगे। लेकिन मंगल के इस सफर के दौरान एक सवाल का जवाब जानना अभी भी बाकी रहा है, कि अगर हमें पृथ्वी से दूर कहीं और जाकर बसना ही है तो, हमने चंद्रमा को क्यों नहीं चुना जबकि चंद्रमा के बारे में तो हम काफी कुछ जान चुके हैं।

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और वह पृथ्वी के तो काफी नजदीक भी है। चंद्रमा पर पहुंचने में हमें केवल 3 दिन का समय लगेगा। जबकि मंगल पर पहुंचने के लिए कम से कम सात महीने का समय चाहिए। चंद्रमा पर पहुंच में कम खर्चा होगा। जबकि मंगल पर पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा खर्चा करना होगा। तो इसका जवाब, वैज्ञानिकों के इन लॉजिक से आपको मिल जाएगा। मंगल के दिन और रात के तापमान में इतना ज्यादा अंतर नहीं है, जितना चंद्रमा के दिन रात के तापमान में होता है। जो लगभग 300 डिग्री सेल्सियस है यानी कि, दिन बहुत ही ज्यादा गर्म है। और रात बहुत ज्यादा ठंडी। इस तरह के बिल्कुल विपरीत तापमान वाले दिन रात को गुजारना। फिलहाल हमारे बस की बात नहीं है। मंगल के पास एक पतला वातावरण है। लेकिन चंद्रमा के पास तो वातावरण है ही नहीं। ऐसे में हम क्या करेंगे। मंगल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से भले ही कम हो, लेकिन चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से तो काफी ज्यादा है। मंगल के पास पानी की मात्रा कम है। लेकिन चंद्रमा के पास जो थोड़ा बहुत पानी है। उसका इस्तेमाल करने के लिए उसके ध्रुवों के आसपास ही बसना होगा, जो कि एक अच्छा विकल्प नहीं है। चंद्रमा पृथ्वी का एक बड़ा सा हिस्सा है, जो बहुत समय पहले इससे अलग हो गया था। लेकिन मंगल, वह तो एक ग्रह है। जिसकी अपनी जियोलॉजी है। और वहां कभी जीवन की संभावनाएं भी रही होगी। चाहे वह सूक्ष्म जीवों के रूप में ही रही हो। इन सब कारणों की वजह से मंगल को जीवन के लिए चंद्रमा से अच्छा विकल्प माना जा रहा है। और फिर साइंटिफिक एक्सप्लोरेशन के लिए, मंगल के पास बहुत कुछ है। जैसे वातावरण गुरुत्वाकर्षण और पानी। अब एक आखरी सवाल जिसका जवाब आपको खुद ढूंढना है, कि जब पृथ्वी हमें ताजी हवा देती है, मजबूती से पैर जमाने को जमीन देती है, इसका गुरुत्वाकर्षण बल हमें हर कदम चलने में मदद करता है, एक खुला आसमान पानी और पेड़ पौधे सब कुछ यह पृथ्वी हम पर लुटा देती है। तो मंगल पर कॉलोनी बसाने के प्रयासों के साथ क्या हम पृथ्वी को बचाए रखने के लिए कुछ नहीं कर सकते। क्या पृथ्वी को संभाल नहीं सकते ? ताकि कई और सालों तक हम इंसान इसके खुले आसमान के नीचे लेटकर तारे गिन सके। पेड़ों की छाव में सुस्ता सके। और खुलकर सांस ले सके। सोचिए का जरूर। और अगर इस वीडियो के जरिए मंगल का सफर आपको अच्छा लगा हो। तो इसे लाइक। आपने ऑलरेडी कर दिया है तो, शेयर करना बिल्कुल ना भूले। कमेंट करके जरूर बताइएगा कि, यह जानकारी यह वीडियो आपको कैसा लगी, और साथ ही इस चैनल को सब्सक्राइब करके, बेल आइकन को प्रेस कर दीजिए। ताकि ऐसे अमेजिंग वीडियोस ऐसी जानकारी आप कभी भी मिस ना करें। मैं। आपसे कहूंगा, अभी के लिए धन्यवाद। मिलेंगे, बहुत जल्द ही नई जानकारियों के साथ। तब तक के लिए जुड़े के लिए धन्यवाद।