सफर-ए-शहादत का पांचवां दिन- 10 पोह बीबी हरशरण कौर जी की लसानी कुर्बानी और शहादत
गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज द्वारा पंज सिंहों के आदेश से श्री चमकौर साहिब का किला छोड़ने के बाद, जब मुगलों को पता चला कि गुरु साहिब ने श्री चमकौर साहिब का किला छोड़ दिया है, तो उन्होंने किले को घेर लिया। आसपास के गांवों में गुरु साहिब की तलाश करने का आदेश था। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के प्यार में सलग्न 16 साल की एक बेहद प्यारी बेटी बीबी हरशरण कौर जी जब कबर सुनी तो उन्होंने अपनी मां से अनुमति लेकर श्री चमकौर साहिब के पवित्र शहीदों की अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) सेवा करने का फैसला किया। आधी रात में यह बालिका श्री चमकौर साहिब के किले में पहुंची। किले पर भारी घेरा डाला गया था लेकिन इस लड़की बीबी हरशरण कौर जी ने बड़े साहस के साथ गुरु साहिब की शरण लेकर अपने प्यारे शहीद भाइयों के पावन शरीरों को खोजा। इस तरह ढूढ़ने में उन्हें किस प्रकार सहायता मिली? 5 ककारों से जिन बाहों में गुरु साहिब के आशीर्वाद वाले कड़े, जिनके पवित्र शरीरों में श्री साहिब, कशहरे, पवित्र केशों में गुरु साहिब के आशीर्वाद वाले कंघे थे, उन शवों को खोज कर एक जगह इकट्ठा किया। दो महान साहिबजादों और बाकी सिंहों के पवित्र शरीरों के लिए एक चिता तैयार की गई और सभी शवों को एक साथ जला दिया गया। मुखाग्नि देकर सोहिला साहिब के पाठ किया। चिता को देखकर शीघ्र ही मुगल सेना ने उस ओर आक्रमण कर दिया और इस बालिका ने बहादुरी से मुगल सेना का मुकाबला किया और अंत में घायल होकर गिर पड़ी। मुगल सेना ने जल्दी से इस घायल लड़की को चिता में फेंक दिया और उसे जिंदा जला दिया। अगले दिन, फुलकिया कबीले के भाई राम और भाई त्रिलोक ने शेष शवों का अंतिम संस्कार किया। बीबी हरशरण कौर जी का बलिदान और शहादत शेष विश्व के लिए अमर रहेगी।
आज रात धन्य माता गुजर कौर जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी, साहिबजादा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब वाजिद खान के आदेश से ठंडे बुर्ज में गुजारी। ठंडा बुर्ज एक ऐसी जगह है जहां उस समय सरहिंद के नवाब गर्मी के दिनों में गर्मी से बचने के लिए प्रयोग करता था। इस ठंडे बुर्ज के तल पर एक नदी बहती थी। पोह का महीना, कड़कड़ाती ठंड और नदी के बीच से बहती हवा, उस वक्त ठंड का क्या हाल होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं, लेकिन मां और साहिबजादों का बुलंद हौसला, न तो सरहिंद के नवाब की धमकियाँ और न ही यह भयान -ठंड के आगे झुक सका । गुरु के लाड़ले बाबा मोती राम मेहरा जी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए माता जी और साहिबजादेह को दूध पिलाने की बड़ी सेवा पहरेदारों को लालच देकर बड़ी मुश्किल से की। बदले में बाबा मोती राम मेहरा जी के पूरे परिवार को कोहलू में पीस दिया गया, लेकिन उस गुरु के प्यारे ने गुरु के चरणों में अपना बलिदान कर दिया।