12 पोह ( साका 1704 ) सरहिंद की कचहरी में दूसरी पेशी पर मौत का फतवा
आज दूसरी बार धन धन बाबा जोरावर सिंह जी और धन धन बाबा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब के दरबार में पेश हुए। सरहिंद के नवाब वाजिद खान, सुच्चा नंद दीवान ने कई प्रयास किए लेकिन छोटे साहिबजादों के सिक्खी – सिदक को कोई झुका नहीं सका। उन्होंने चाल चलकर कचहरी का मुख्य दरवाजा बंद कर दिया और छोटा दरवाजा खोल दिया ताकि जब साहिबजादे दाखिल हों तो सिर झुकाकर अंदर आएं। लेकिन साहिबजादों ने पहले अपना पैर (पावन चरण) अंदर डाला और अंदर घुसते ही जोर से फतेह बुलाई। कचहरी में सन्नाटा छा गया | नवाब और अहिलकार हक्के-बक्के रह गए। जब किसी का कोई वश ना चला तो, काजी की सहमति से फतवा सुनाया गया- “इन्हें जिन्दा नहों में चिनवा दिया जाए ।” सरहिन्द की धरती पर इतना कहर होने लगा, मानो अम्बर भी रो पड़ा और धरती भी काँपने लगी, इतना बड़ा कहर मेरे ऊपर होने लगा, लेकिन गुरु के लाल साहिबजादे निडरता से सिक्ख सिद्धक निभा गए ।
