सरहिंद की कचहरी में पेशी
11 पोह (साका 1704)
आज धन धन बाबा जोरावर सिंह जी और धन धन बाबा फतेह सिंह जी सरहिंद के नवाब के दरबार में उपस्थित हुए। पहले उसने अपने पवित्र पैर अंदर रखे और फिर दरबार में प्रवेश करते ही गुरु जी की फतेह बुलाई। बहुत धमकियाँ दीं, बहुत प्रलोभन दिए, पर गुरु के ये प्यारे लाल हमारे लिए एक मिसाल छोड़ गए, सिक्ख सिद्दक में परिपक्व रहकर, दुनिया की सारी सुख-सुविधाएँ छोड़ते हुए । साहिबजादों ने सिक्खी सिद्दक को दुनिया का सबसे बड़ी सौगात दर्शायाऔर उसमें परिपक्वता का सबसे बड़ा तोहफा। मालेरकोटले के नवाब ने हाँ का नाहरा देते हुए अपना नाम सिखों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया। इन ऐतिहासिक पलों में दीवान सुच्चा नंद का नाम हमेशा काले अक्षरों में लिखा जाएगा। धन धन माता गुजर कौर जी ने अपने छोटे साहिबज़ादों को गले लगाकर उन्हें अपनी सुहावनी गोदी का आनंद देकर गुणवंती दादी का वास्तविक कर्तव्य निभाया। आइये माता जी और साहिबजादा के पूर्णों पर चलकर अपने बच्चों को ये शहादतें सुनायें और केशों की बेअदबी को छोड़कर फालतू फैशनों को छोड़ कर गुरु के शिष्य बनें।